बेरोजगारी की भीषण समस्या से जूझ रहे उत्तराखंड राज्य के युवाओं के उदास चेहरों पर कुछ उम्मीद दिखाई दे रही है। भर्तियों में धांधली की शिकायतों पर सरकार के ताबड़तोड़ वार से नित नए खुलासे इस उम्मीद की वजह माने जा रहे हैं। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के साथ ही उत्तराखंड विधानसभा की नियुक्तियों में गड़बड़ी की जांच की राह खोलकर सरकार राज्य के युवाओं के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि इसी कीचड़ में वह रोजगार का कमल खिलाना चाहती है।सरकार के इस कदम से भाजपा नेता भी उत्साहित हैं। बेशक ये मोदी की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति का विस्तार है और उत्तराखंड इसकी प्रयोगशाला बन रहा है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया के लिए बनाया गया था। स्नातक स्तरीय परीक्षा के पेपर लीक मामले में एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासों ने राज्य के लाखों युवाओं को बेचैन कर दिया।पेपर लीक मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जब एसटीएफ को जांच सौंपी तो किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि आयोग की परीक्षा में संगठित गिरोह के सुराग मिलेंगे। जांच फ्री हैंड देकर सरकार ने एसटीएफ को तेजी से घपले की परतें उधेड़ने का अवसर दिया तो नतीजा सबके सामने है। पेपर लीक मामले में अब तक 30 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।एक दर्जन और गिरफ्तारी होने की संभावना जताई जा रही है। जांच में आरोपी दो शिक्षक और दो सचिवालय अधिकारी निलंबित हो चुके हैं। पंत नगर विवि का एक आरोपी अधिकारी भी धरा जा चुका है। जैसे-जैसे जांच का शिकंजा कसा जा रहा है नित नए तथ्य और खुलासे सामने आ रहे हैं। राज्य के लिए ये अहम घटना है, क्योंकि भर्तियों पर सवाल बहुत बार उठे लेकिन कोई भी जांच अंजाम तक नहीं पहुंची। भर्तियों में घपलेबाजी के जुड़ रहे तार से आयोग की करीब आधा दर्जन ऑनलाइन परीक्षाएं संदेह के घेरे में आ चुकी हैं और सरकार ने इन सभी परीक्षाओं के आलोक में जांच की दिशा तय करने के आलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं। साथ ही पुलिस की गिरफ्त में आए लोगों की करोड़ों की संपत्ति की जांच करने को कहा गया है। जाहिर है कि इस मामले में सरकार के सख्त रुख से परीक्षा में धांधली से करने वाले और धांधली कराने वाले दोनों में दहशत का माहौल है।