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दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक कार्यवाही अन्य उपायों का ‘शॉर्टकट’ नहीं है और आपराधिक कानून को सामान्य तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मामले में एक आरोपी को तलब करना एक गंभीर मामला है और शिकायतकर्ता को आपराधिक कानून के तहत कार्यवाही के लिए आरोपों के समर्थन में रिकॉर्ड पर तथ्य लाने होंगे।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी एक वकील के खिलाफ शिकायत और जारी समन आदेश को निरस्त करते हुए की। अदालत को वकील के खिलाफ शिकायत को अपराध के रूप में स्थापित करने के लिए प्रथम दृष्टया आवश्यक तथ्यों का अभाव नजर आया।
शिकायतकर्ता रियल एस्टेट कंपनी ने मौजूदा मामले में दावा किया कि याचिकाकर्ता वकील ने उसके नाम पर बनाए गए एस्क्रौ अकाउंट में रखे गए कुछ दस्तावेजों को कंपनी के विरोधियों को अवैध रूप से जारी कर दिया था।
वकील को राहत देते हुए जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि आपराधिक कार्यवाही अन्य उपायों के लिए कोई शॉर्टकट नहीं है। याचिकाकर्ता पेशे से वकील हैं और उन्होंने पक्षकारों को अपनी पेशेवर सेवाएं दी हैं और प्रथम दृष्टया यह स्थापित करने के लिए कोई तथ्य नहीं है कि उन्होंने कथित रूप से कोई अपराध किया है। चूंकि आपराधिक विश्वासघात या प्रलोभन के बेईमान इरादे का कोई मामला नहीं बनाया गया है …इसलिए 27 नवंबर 2013 का समन आदेश और याचिकाकर्ता की शिकायत रद्द किए जाने योग्य है।
हाईकोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में, इस बात का कोई आरोप नहीं है कि एस्क्रौ खाते में जमा किए गए दस्तावेजों का इस्तेमाल याचिकाकर्ता द्वारा अपने निजी लाभ के लिए किया गया था, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के आवश्यक अवयवों में से एक है और इस प्रकार उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।
याचिकाकर्ता ने समन आदेश और मुकदमे को इस आधार पर रद्द करने की मांग की थी कि उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है और उसे जानबूझकर शिकायतकर्ता और दूसरे पक्ष के बीच एक नागरिक विवाद में घसीटा जा रहा है।