उत्तराखंड की वित्तीय माली हालात लगातार बिगड़ती जा रही है। राज्य पर अब तक 73,751 करोड़ रुपये का खर्च हो चुका है। खास बात यह है कि राज्य सरकार को कर्ज और ब्याज चुकाने के लिए ही बाजार से उधार लेना पड़ रहा है। कैग के पिछले पांच वर्षों के कर्जे की रिपोर्ट सदन में रखी है। सरकार पर खर्च बढ़ने के बजाय हर साल बढ़ता जा रहा है।
इसके उलट आय में कोई खास वृद्धि नहीं हो रही है। यही वजह से सरकार को रिक्त पदों पर स्थायी कर्मचारियों को रखने के बजाय आउटसोर्स से रखने पड़ रहे हैं, जिससे ऐसे आउटसोर्स कर्मचारियों के रिटायरमेंट पर अनावश्यक बोझ न पड़े। वर्ष 2016-17 में उत्तराखंड पर 44,583 करोड़ का कर्ज था, जो वर्ष 2021 में 73,751 करोड़ तक पहुंच चुका है।
यानी इस अवधि में सरकार 29,168 करोड़ का कर्ज रिजर्व बैंक के जरिए उधार ले चुकी है। सरकार को अपने कुल कर्ज व ब्याज चुकाने के लिए भी उधार लेना पड़ रहा है और इस रकम से 70.90 फीसदी इस एवज में जमा करना पड़ रहा है। यानी लगभग 29 फीसदी बजट उसके वेतन, भत्ते, पेंशन व अन्य कार्यों के काम आ रहा है।
सबसे ज्यादा है बाजारी ऋण
उत्तराखंड पर सबसे ज्यादा बाजारी ऋण है। रिजर्व बैंक के जरिए राज्य सरकार यह कर्ज उठाती है। इसकी कुल राशि 53,302 करोड़ है जबकि भारत सरकार की देनदारी 3813 करोड़ की है। राज्य सरकार कर्मचारियों के जीपीएफ, ईएफ, राष्ट्रीय बचत स्कीम आदि से भी16,636 तक करोड़ की उधारी है।
तो फिर कैसे होंगे विकास कार्य
सरकार को जब कर्ज और उस पर लगने वाले ब्याज को ही चुकाने के लिए उधार लेना पड़ रहा हो तो इससे विकास कार्य कैसे शुरू हो पाएंगे। ऐसे में तो राज्य सरकार अपने संसाधनों से कोई बड़े प्रोजेक्ट बनाने की सोच भी नहीं सकती लिहाजा उसे केंद्रीय अनुदान के भरोसे ही निर्भर रहना होगा।